डेस्क । 27 अगस्त से गणेश महोत्सव की शुरुआत हो चुकी है, जो आज अनंत चतुर्दशी (6 सितंबर) तक चलेगा। इस मौके पर चंद्रमा देखने को वर्जित माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार उस दिन चंद्र दर्शन करने से कलंक और मानहानि की आशंका मानी जाती है। ऐसी धारणाएं बताती हैं कि चंद्र दर्शन से व्यक्ति की प्रतिष्ठा खराब हो सकती है। पौराणिक घटनाओं के अनुसार भगवान कृष्ण (Shri Krishna) ने भी एक बार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के समय चंद्रमा देख लिया था, जिससे उन पर चोरी के आरोप लगाए गए थे और स्यमंतक मणि चुराने जैसा दुर्भाग्यपूर्ण मामला सामने आया।
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इस कारण चतुर्थी के चांद देखने से भगवान पर लगे कलंक को लेकर लोगों में सावधानी बनी रहती है, ताकि सामान्य लोग भी मानहानि से बच सकें। इस कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने गलती से चतुर्थी के चंद्रमान को देख लिया था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें चोरी के झूठे आरोप का सामना करना पड़ा। ऐसी घटनाओं का उद्देश्य यह बताना है कि देवी-देवताओं के साथ जुड़े चंद्र दर्शन के प्रति सतर्कता क्यों जरूरी मानी जाती है। अब चलिए भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी इस कथा को विस्तार से समझते हैं।

कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारका में एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम सत्राजित यादव था। उसने सूर्य नारायण की आराधना की, जिससे सूर्य देव प्रसन्न होकर उसे वरदान स्वरूप स्यमन्तक मणि (Syamantaka Mani) प्रदान कर दिए। इस मणि की खास बात यह थी कि यह हर दिन आठ भार सोना देता था। जब भगवान श्रीकृष्ण को इसकी जानकारी मिली, उन्होंने हँसी के अंदाज़ में कहा—यह मणि मुझे दे दो। फिर सत्राजित ने वह मणि अपने बड़े भाई को दे दी। एक दिन उसका भाई शिकार पर गया, और वहां एक शेर ने उसे मार डाला। समय बीतने पर रीछों के राजा जामवंत जी ने उसी शेर को मार कर मणि वापस पा ली। पर कुछ दिनों तक सत्राजित के भाई के शिकार से लौटने की प्रतीक्षा बढ़ती चली गई और उसे चिंता होने लगी कि शायद श्रीकृष्ण ने ही मणि पाने के लिए उसके भाई को मार डाला। धीरे-धीरे यह अफवाह पूरे नगर में फैल गई। स्यमन्तक मणि को पाने की होड़ से भगवान श्रीकृष्ण और जामवंत जी के बीच युद्ध छिड़ गया, जो लगभग 21 दिनों तक चला। अंततः जब जामवंत श्रीकृष्ण को पराजित नहीं कर सके, तो उन्हें यह समझ में आया कि वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि विष्णु के अवतार हैं।
एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक बार गणेश जी अपने वाहन मूषक पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। यात्रा के दौरान मूषकराज की टक्कर किसी अज्ञात वस्तु से हो गई, जिससे भगवान गणेश का संतुलन बिगड़ गया और वे गिर पड़े। इस घटनाक्रम को दूर से चंद्रमा देख रहा था और उसने गणेश जी पर हंसी उड़ा दी। इस उपहास पर गणेश जी क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया—भाद्रप ड शुक्ल चतुर्थी के दिन जो भी उन्हें देखेगा, उसे कलंक का सामना करना पड़ेगा। इसे कुछ ग्रंथों में भी इस प्रकार दर्शाया गया है कि चंद्रमा ने गणेश जी की सूंड और उनके रूप का मजाक उड़ाया था, इसलिए गणेश जी ने उनके प्रति कठोर श्राप दिया। यह कथा भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के साथ जुड़ी है और चंद्रमा के कलंकित देखने की बात को प्रमुख रूप से स्थापित करती है। साथ ही, इस कथा में भगवान गणेश की प्रतिशोधप्रियता और चंद्रमा के भ्रमण-पथ के बीच का विरोधाभास भी दर्शाया गया है, जो भारतीय पुराणों की धार्मिक और नैतिक शिक्षाओं के बीच एक आवश्यक स्थान रखती है।