नई दिल्ली। आसमान में दहाड़ने वाला, जिसे देखते ही दुश्मन कांप उठते थे, वह योद्धा अब भारतीय वायुसेना को अलविदा कह रहा है। जी हां, हम बात कर रहें है भारतीय वायुसेना की ‘रीढ़’ कहे जाने वाले सुपरसोनिक लड़ाकू विमान मिग-21 (IAF MIG-21 Retires) की जो शुक्रवार 26 सितंबर को रिटायर हो गया। चंडीगढ़ एयरबेस पर इस लड़ाकू विमान को विदाई दी गई। इसी के साथ ही विमान की सेवा आधिकारिक रूप से समाप्त हो जाएंगी।
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56 वर्ष से भी अधिक समय तक भारतीय वायुसेना के लड़ाकू बेड़े की शान रहे प्रसिद्ध मिग-21, जो आज सेवामुक्त होने वाले हैं, उनका ऐतिहासिक सफर अब समाप्त हो जाएगा। मिग-21 के संचालन के आधिकारिक समापन का यह समारोह चंडीगढ़ में एक औपचारिक फ्लाईपास्ट और विदाई समारोह के साथ होगा। चंडीगढ़ एयरबेस पर यह प्रतिष्ठित विमान 60 वर्ष पहले भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया था। ‘पैंथर्स’ उपनाम वाले 23वें स्क्वाड्रन का अंतिम मिग-21 विमान इस समारोह में विदाई पाएगा, जिसे चंडीगढ़ वायुसेना स्टेशन पर आयोजित किया जाएगा। इस मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मुख्य अतिथि होंगे। समारोह में प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल अनिल चौहान, सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र दूर्वेदी, एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह और नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी समेत कई उच्च अधिकारी मौजूद रहे।
विदाई समारोह में वायुसेना प्रमुख एपी सिंह ने 23 स्क्वाड्रन के छह जेट विमानों के साथ अंतिम उड़ान भरी। स्क्वाड्रन लीडर प्रिया शर्मा ने भी फ्लाईपास्ट में भाग लिया। इस विमान को 1963 में चंडीगढ़ में वायुसेना में शामिल किया गया था। यह भारत का पहला सुपरसोनिक जेट था, यानी यह ध्वनि की गति (332 मीटर प्रति सेकंड) से भी तेज़ उड़ान भर सकता था। अब इसकी जगह तेजस एलसीए मार्क 1ए लेगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, तीनों सेनाओं के प्रमुख और रक्षा मंत्रालय के कई अधिकारी मिग-21 के सेवामुक्ति समारोह में शामिल हुए। जगुआर और तेजस लड़ाकू विमानों ने भी विदाई समारोह में भाग लिया।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बोले ये बात:
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि 1971 के युद्ध को कोई कैसे भूला सकता है। पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय, मुश्किल हालात में मिग-21 ने ढाका के गवर्नर हाउस पर हमला किया था और उसी दिन उस युद्ध के परिणाम की दिशा तय हो गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि अपने लंबे इतिहास में मिग-21 ने ऐसे कई मौके देखे हैं जब इसकी निर्णायक क्षमता स्पष्ट रूप से सामने आई है। जब भी ऐतिहासिक मिशन आये हैं, हर बार मिग-21 ने तिरंगे का सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ाई है। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्मृति हमारे संयुक्त इतिहास की भागीदारी है, हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है, और उस यात्रा की प्रतिबिंब है जिसमें साहस, बलिदान और उत्कृष्टता की कहानी लिखी गई। राजनाथ सिंह ने कहा कि मिग-21 को विक्रम, त्रिशूल और बादल के नामों से भी जाना गया है। रक्षा मंत्री ने हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की सराहना की, जिसने इसे बनाए रखने और मेंटेन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मिग-21 की काबिलियत बताते हुए उन्होंने कहा कि यह भारतीय सेना का भरोसा और सम्मान रहा है। इसकी विरासत दशकों से लगातार विकसित होती चली आ रही है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने MiG 21 के फेयरवेल सेरेमनी को संबोधित करते हुए कहा कि MiG 21 हमारे देश की रक्षा का एक सिंबल रहा है। MiG 21 ने कई दशकों तक हमारे देश की सुरक्षा का भार अपने विंग्स पर उठाया है। उन्होंने कहा कि 60 सालों का MiG 21 का सफर अपने आप में खास है। हम सभी के लिए MiG 21 सिर्फ एक फाइटर जेट नहीं बलकि हमारी परिवार की तरह है।
MiG-21 Retirement: कई युद्धों में निभाई अहम भूमिका-
बता दें कि लगभग छह दशक पहले मिग-21 को 1963 में भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया था। मिग-21 का पहला स्क्वाड्रन 1963 में चंडीगढ़ में स्थापित किया गया था। भारतीय वायु सेना में शामिल होने के बाद, इस लड़ाकू विमान ने कई मोर्चों पर भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संख्या में सीमित होने के बावजूद, मिग-21 ने 1965 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में, मिग-21 भले ही नया था लेकिन इसने दुश्मन को कड़ी टक्कर दी थी। उस युद्ध में पाकिस्तान अमेरिकी लड़ाकू विमानों से लड़ रहा था, लेकिन फिर भी वह मिग-21 के सामने टिक नहीं पाया। मिग-21 ने अपनी गति और सटीकता से पाकिस्तान को स्तब्ध कर दिया था।
MiG-21 का आसमान में रहा दबदबा:
वहीं 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुए युद्ध में, भारत के लड़ाकू विमान, मिग-21 ने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये थे। अपने सटीक हमलों से मिग-21 ने दुश्मन के कई रनवे नष्ट कर दिए थे। उस समय मिग-21 का आसमान में दबदबा था। 1971 के युद्ध में 93,000 से ज़्यादा पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। इस युद्ध में मिग-21 की आक्रामक रणनीति बेहद अहम थी। कारगिल युद्ध में मिग-21 ने दुश्मन की घुसपैठ और हवाई हमलों को रोकने में अहम भूमिका निभाई थी।
इसने भारतीय वायु सेना को पश्चिमी क्षेत्र के प्रमुख बिंदुओं और क्षेत्रों पर हवाई श्रेष्ठता प्रदान की। यह अक्सर कमांडरों की पहली पसंद होता था। आसमान में इसकी गर्जना देश के आत्मविश्वास से भर जाती थी। इसे कई फिल्मों में भी दिखाया गया है। इस विमान से अनगिनत किस्से और कहानियां जुड़ी हैं, जिन्हें MiG-21 हमेशा के लिए अपने पीछे छोड़ जाएगा।
400 से ज़्यादा मिग-21 विमान हो चुके क्रैश:
रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 400 से ज़्यादा मिग-21 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं, जिनमें 200 से ज़्यादा पायलट मारे गए हैं। यही कारण है कि इस लड़ाकू विमान को “उड़ता ताबूत” और ‘विडो मेकर’ कहा जाता है।
MiG-21 के साथ भारतीय वायु सेना ने एक युग समाप्त होते देखा। आज एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने MiG-21 विमानों की अंतिम उड़ान भरी और यह ऐतिहासिक विमान बेड़ा सेवामुक्त किया गया। MiG-21 को 1963 में भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया था, जिसने दशकों तक उड़ान के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखी। यह विमान पहली बार 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के सामने निर्णायक भूमिका निभाने के कारण इतिहास में दर्ज हो गया। MiG-21 ने 1965 के युद्ध, 1999 के कारगिल संघर्ष और 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसे प्रमुख सैन्य अभियानों में भी अहम योगदान दिया, जिसने हमारी वायु सेना की क्षमताओं को मजबूती से दर्शाया। MiG-21 के योगदान और सफलता की कहानी लंबे समय तक स्मरणीय रहेगी और आज के दिन इसे सम्मानपूर्वक विदाई दी गई।