मुंबई। भारतीय शेयर बाजार (Indian stock market) के लिए आगामी सप्ताह कई महत्वपूर्ण घटनाओं से भरपूर रहने वाला है, जो बाजार की दिशा तय कर सकती हैं। प्रमुख रूप से भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक, भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर बातचीत, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की गतिविधियां और वैश्विक आर्थिक संकेतकों की भूमिका निर्णायक होगी।
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एच-1बी वीजा की बढ़ती लागत ने IT इंडेक्स पर शुरुआती दबाव डाला, जबकि टेक कंपनी एसेंचर ने बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की। इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दवा पर 100% टैरिफ के फैसले के कारण शेयर बाजार में पांच दिनों की तेज गिरावट दर्ज की गई। इस गिरावट के कारण पांच दिन में निवेशकों के लगभग 16 लाख करोड़ रुपये खो गए, जबकि अकेले आखिरी कारोबारी सत्र शुक्रवार में लगभग 7 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अब सवाल उठता है कि इस हफ्ते शेयर बाजार में गिरावट बनी रहेगी या नहीं, और 29 सितंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में बाजार की चाल कैसी होगी। आइए जानते हैं बाजार विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

देश के शेयर बाज़ार के आखिरी सत्र में भारी गिरावट देखने को मिली। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का प्रमुख सेंसेक्स 733.22 अंक गिरकर 80,426.46 पर बंद हुआ, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी 236.15 अंक गिरकर 24,654.70 तक आ गया। पिछले सप्ताह की बात करें तो सेंसेक्स लगभग 2,097.63 अंक या 2.54% और निफ्टी लगभग 631.80 अंक या 2.50% नीचे बंद हुआ। बैंक निफ्टी में भी तेज गिरावट दर्ज की गई। इस सप्ताह बाज़ार हर सत्र में निचले स्तर पर बंद हुआ है, जिससे निवेशकों के मन में अस्थिरता बनी रही। BSE पर सूचीबद्ध कंपनियों का मार्केट कैप इस अवधि में लगभग 16 लाख करोड़ रुपये घट गया। शेयर बाज़ार में गिरावट के कारणों पर विश्लेषक क्या कह रहे हैं? जियोजित इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के रिसर्च हेड विनोद नायर के अनुसार, इस सप्ताह भारतीय शेयर बाजार की चाल नकारात्मक रही और सभी सेक्टरों में गिरावट देखी गई। इसका प्रमुख कारण IT इंडेक्स पर शुरुआती दबाव रहा, जिसकी वजह H-1B वीजा की लागत में वृद्धि और एनसेसर (संस्थान/उम्मीदें) के निराशाजनक आउटलुक को माना गया। फार्मा सेक्टर पर अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ के चलते फार्मा शेयरों में तेज गिरावट आई, जिससे बाजार का सेंटीमेंट कमजोर हुआ। मिड-कैप और स्मॉल-कैप शेयरों में बड़ी गिरावट दर्ज की गई, जबकि लार्ज-कैप शेयरों में गिरावट उतनी तीखी नहीं रही, जो उनके वैल्यूएशन में वृद्धि के साथ दबाव को दर्शाती है।
RBI की नज़र ब्याज दरों पर:
MPC की बैठक 29 सितंबर से 1 अक्टूबर के बीच होने जा रही है, जिसमें ब्याज दरों की समीक्षा की जाएगी। जानकारों के अनुसार, केंद्रीय बैंक रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर सकता है। वर्तमान में रेपो रेट 5.5 प्रतिशत पर है, जिसे फरवरी 2025 से अब तक करीब 1 प्रतिशत तक घटाया जा चुका है। यदि कटौती होती है, तो यह ब्याज दरों में नरमी के संकेत के रूप में देखा जाएगा, जिससे बैंकिंग, ऑटो, रियल एस्टेट जैसे सेक्टर्स को लाभ मिल सकता है।
भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में संभावित सुधार:
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर चल रही बातचीत निवेशकों के लिए विशेष महत्व रखती है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात की है। इस डील से दोनों देशों के बीच व्यापारिक टैरिफ और अन्य बाधाओं में छूट मिलने की उम्मीद है, जिससे औद्योगिक, फार्मा और टेक कंपनियों को सीधा लाभ मिल सकता है।
FII और DII का आंकड़ा बना चिंता का विषय:
एफआईआई ने पिछले सप्ताह 19,570.03 करोड़ के शेयरों की बिक्री की, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) ने 17,411.4 करोड़ के शेयर खरीदे। इस भारी बिकवाली के कारण बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ गया है। निवेशकों की धारणा को एफआईआई की आगे की रणनीति काफी हद तक प्रभावित कर सकती है।
बाजार में गिरावट की बड़ी वजहें:
बीते सप्ताह निफ्टी और सेंसेक्स में क्रमशः 2.65% और 2.66% की गिरावट दर्ज की गई। शुक्रवार को सेंसेक्स 733 अंक और निफ्टी 236 अंक गिरकर बंद हुए। यह गिरावट मुख्यतः एशियाई बाजारों की कमजोरी, दवा कंपनियों पर अमेरिकी टैरिफ की घोषणा, एक्सेंचर की कमजोर गाइंडेंस और वैश्विक अनिश्चितता की वजह से देखी गई। विशेष रूप से आईटी और फार्मा शेयरों में जबरदस्त गिरावट आई। जीईई लिमिटेड ने 1:1 के अनुपात में बोनस शेयर बांटने की घोषणा की है। यानी जिन निवेशक के पास 1 शेयर हैं उसे 1 शेयर मुफ्त में मिलेंगे। कंपनी ने 3 अक्टूबर को एक्स-बोनस डेट तय किया है। इसका मतलब है कि जिन इन्वेस्टर के पास 3 अक्टूबर से पहले कंपनी के शेयर होंगे उन्हें की बोनस शेयर दिए जाएंगे।
निकट भविष्य की रणनीति:
वर्तमान परिस्थितियों में निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दी जा रही है। हालांकि, ब्याज दरों में संभावित कटौती, सकारात्मक ट्रेड डील और घरेलू खपत बढ़ने की संभावना के चलते दीर्घकालिक निवेशकों के लिए यह एक रणनीतिक अवसर हो सकता है। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में भारतीय बाजार घरेलू निवेश और मांग आधारित सेक्टरों की ओर अधिक केंद्रित रहेगा।
बताया गया कि शेयर बाजार में गिरावट के दो प्रमुख कारणों में से एक यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर पड़ रहा है, जिससे विदेशी निवेशकों का पैसा बाहर जा रहा है और अमेरिका के कारोबारी फैसलों के चलते भू-राजनीतिक जोखिम बढ़ गया है। इसके उलट सोना सुरक्षित निवेश के रूप में अपनी आकर्षण बनाए रखे हुए है। वैश्विक व्यापार तनाव, रुपये की गिरावट, केंद्रीय बैंकों की निरंतर खरीद-रेखाएं और फेड की नीति पर अनिश्चितता का योगदान इस क्रम में रहा। चांदी में भी निवेशकों की रुचि बढ़ी है क्योंकि औद्योगिक मांग मजबूत थी और प्रचलन (सप्लाई) में कमी नजर आई।
अगले सप्ताह बाजार की चाल कैसी रहेगी?
विनोद नायर का कहना है कि अगले हफ्ते निवेशकों का ध्यान विशेषकर अमेरिका के आर्थिक आंकड़ों पर रहेगा। खासकर महंगाई और रोजगार के आंकड़ों पर उनकी नजर टिके रहने की आशंका है। घरेलू मोर्चे पर आरबीआई की मौद्रिक नीति और औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े सेंटीमेंट को प्रभावित करेंगे। बैंकिंग, एफएमसीजी और ऑटो सेक्टर के फंडामेंटल घरेलू नीतियों और आर्थिक स्थिरता के कारण ये क्षेत्र मजबूत बने हुए हैं। हालांकि, मौजूदा बाजार की वैल्यूएशन की स्थिरता कॉर्पोरेट मुनाफे में सुधार और भारत-अमेरिका व्यापार विवाद के समाधान पर निर्भर करती है। इन सबका असर बाजार पर स्पष्ट रूप से दिखेगा।